Tuesday, December 9, 2014

एक बार एक परिवार में एक नन्हीसी छोटीसी बच्ची आंगनमें खेल रही थी।  तभी दादाजी ने आवाज दी "बिटिया, मेरा चष्मा कही देखा क्या?" मेज पर रखा चष्मा तुरंत वह दादाजी के पास दे आयी। दादाजी खुश हो कर बोले, "तू तो मेरी रोशनी है। मैं तुझे रोशनी कहकर ही बुलाऊँगा। ".  तभी भैय्या ने आवाज लगाई "चल आजा खेलेंगे ". बड़े प्यार से दोनों खेलते रहे. खेलते हुए भैय्या बोला, " तू तो मेरी गुड़िया है, गुड़िया। मै तुझे गुड़िया कहकर ही बुलाऊँगा। " दफ्तर से थके-हारे पिताजी आये, आकर कुर्सी में बैठ गये। पिताजी को देखकर नन्ही दौड़कर आयी और पिताजी की गोद में बैठ गयी। पिताजी भी अपनी दिनभर की थकान भूलकर मुस्कुराकर नन्ही के साथ बातें करने लगे। पिताजी ने कहा , "तू तो मेरी मुस्कान है। मैं तुझे मुस्कान कहकर ही बुलाऊँगा। ". रात को नन्ही जब माँ के पास कहानी सुनते- सुनते सो गई तो माँ ने नन्ही को प्यार किया और कहने लगी, "यह तो मेरी परी है।" इसी तरह हँसी-ख़ुशी दिन जा रहे थे।

एक बार चर्चा चल रही थी, वह कौन है जो आपके खुशियोँ की वजह हैं? दादाजी ने कहाँ, "रोशनी", पिताजी ने कहाँ, "मुस्कान",माँ ने कहाँ, "परी",भैय्या ने कहाँ, "गुड़िया". और बातों-बातों मेँ ही बहस शुरू हो गयी।
नन्ही मुस्कुराकर  कहने लगी,"ये सब तो मै ही हुँ। " सब एक पल के लिए शांत हो गए। पिताजी ने कहा," ये ठीक है की हम सब एक के बारे में बात कर रहे है पर आज से सब उसे एक ही नाम से बुलाएँगे। सब इसे मुस्कान नाम से ही बुलाएँगे।" और फिर बहस शुरू हो गयी। नन्ही की समझ में ये नहीं आ रहा था की समस्या क्या है? ये बहस क्यों है? नन्ही ने कहा," आप मुझे प्यार से जिस भी नाम से आवाज देते है मुझे अच्छा लगता है। "

जिंदगी में हमें भी अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है. जैसे बेटा, भैया, पिताजी, चाचा, मामा इ।  हम हर व्यक्ति का आदर करते है। तो क्या हम हर धर्म का आदर नही कर सकते? इस सृष्टि का विधाता एक है।  हम उसे भगवान, ईश्वर, अल्लाह या वाहेगुरु कहे वो है तो एक ही। हम उसे अपनेपन से जिस नाम भी बुलाते है उसे अच्छा लगता है।  हम अगर दूसरे धर्म को बुरा कहते है तो सच्चाई ये है की हम अपने भगवान को बुरा कह रहे है क्योकि वह एक ही है ।

भगवान एक ही है।  सभी धर्म का आदर करो।

- मिनल निखाडे